
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य को कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने चाणक्य नीति में जीवन के हर पहलू को संतुलित करने के लिए गहरे और व्यावहारिक सिद्धांत दिए हैं। यह नीतियां न केवल सामाजिक और राजनीतिक जीवन के लिए मार्गदर्शक हैं, बल्कि पारिवारिक रिश्तों को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन नीतियों में पिता और बेटी के पवित्र रिश्ते के लिए चाणक्य ने कुछ कार्यों को वर्जित बताया है, जिनका पालन न करने से बेटी का भविष्य और परिवार की मर्यादा प्रभावित हो सकती है। चाणक्य नीति के आधार पर नीचे छह ऐसे कार्य बताए गए हैं, जिन्हें पिता को अपनी बेटी के साथ कभी नहीं करना चाहिए, अन्यथा बाद में पछतावे का सामना करना पड़ सकता है।
बेटी की इच्छाओं का अनादर करना
चाणक्य नीति में कहा गया है कि ‘न यथेच्छति तत् कुर्यात् पुत्रीं प्रति पिता यदि’। अर्थात, पिता को बेटी की इच्छाओं का अनादर नहीं करना चाहिए। बेटी की भावनाओं, सपनों और आकांक्षाओं को समझना पिता का प्रथम कर्तव्य है। उसकी पढ़ाई, करियर या विवाह जैसे महत्वपूर्ण निर्णयों में उसकी राय को नजरअंदाज करना रिश्ते में दरार डाल सकता है। चाणक्य के अनुसार, ऐसा करने से बेटी का आत्मविश्वास कमजोर हो सकता है और पिता को बाद में अपने निर्णय पर पछताना पड़ सकता है।
बेटी पर अनावश्यक नियंत्रण
चाणक्य नीति में उल्लेख है कि ‘नातिसंनादति कन्यां पिता यः स्वेच्छया चरेत्’। इसका मतलब है कि पिता को बेटी पर अत्यधिक नियंत्रण नहीं करना चाहिए। बेटी को स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की शिक्षा देना जरूरी है। उसकी हर गतिविधि पर पाबंदी लगाना, जैसे दोस्तों से मिलना या करियर चुनना, उसके व्यक्तित्व को दबा सकता है। चाणक्य का मानना है कि इससे बेटी का विकास रुक सकता है। संतुलित मार्गदर्शन ही बेटी को सशक्त बनाता है।
बेटी के सामने अनैतिक आचरण करना
चाणक्य नीति कहती है कि ‘पिता धर्मः स्वयं रक्षेत् कन्या दृष्ट्या प्रभावति’—पिता को अपने आचरण को शुद्ध रखना चाहिए, क्योंकि बेटी उसका अनुसरण करती है। पिता बेटी के लिए पहला रोल मॉडल होता है। उसके सामने झूठ बोलना, अनैतिक कार्य करना या असम्मानजनक व्यवहार करना बेटी के मन पर बुरा प्रभाव डालता है। इससे न केवल परिवार की मर्यादा टूटती है, बल्कि बेटी का पिता पर विश्वास भी कम हो सकता है। चाणक्य के अनुसार, ऐसा व्यवहार बाद में पिता के लिए शर्मिंदगी और पछतावे का कारण बन सकता है।
बेटी के विवाह में जल्दबाजी या लापरवाही करना
चाणक्य नीति में लिखा है कि ‘कन्या दानं विचार्यं स्यात् न त्वरायां न चालस्ये’—बेटी का विवाह सोच-विचार कर करना चाहिए, न जल्दबाजी में और न ही लापरवाही में। पिता को बेटी के लिए उपयुक्त वर चुनने में सावधानी बरतनी चाहिए। उसकी शिक्षा, संस्कार, और भविष्य को ध्यान में रखकर निर्णय लेना जरूरी है। सामाजिक दबाव या जल्दबाजी में गलत वर चुनना बेटी के जीवन को दुखी कर सकता है। चाणक्य के अनुसार, यह पिता की सबसे बड़ी भूल हो सकती है।
बेटी की सुरक्षा में लापरवाही करना
चाणक्य नीति में कहा गया है कि ‘कन्या रक्षा पिता धर्मः, यत्र न स्यात् तत्र दोषः’—बेटी की सुरक्षा पिता का सर्वोच्च धर्म है और इसमें लापरवाही दोष का कारण बनती है। बेटी की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना पिता का कर्तव्य है। चाहे वह उसकी शिक्षा, सामाजिक माहौल, या भावनात्मक जरूरतें हों, पिता को हमेशा सजग रहना चाहिए। चाणक्य के अनुसार, सुरक्षा में लापरवाही बेटी के भविष्य को खतरे में डाल सकती है।