
भारत अमेरिका से एलपीजी इंपोर्ट करने की योजना बना रहा है.
भारत और अमरीका के रिश्तों में लगातार खटास बढ़ती हुई दिखाई दे रही है. यही कारण है कि अमेरिकी 50 फीसदी टैरिफ का दबाव भारत की कंपनियों पर लगातार बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है. अब भारत की पेट्रोलियम कंपनियों ने ऐसा प्लान बनाया है, जिससे अमेरिका के साथ रिश्ते भी मुधर हों और टैरिफ में भी कमी करने का दबाव बनाया जा सके. वास्तव में भारत की पेट्रोलियमकंपनियां एलपीजी की लॉन्ग टर्म सप्लाई पक्की करने की प्लानिंग कर रहा है. इसका कारण भी है. ट्रेड वॉर की वजह से अमेरिका से खाना पकाने का फ्यूल और प्लास्टिक की सप्लाई काफी बाधित हुई है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी तेल कंपनियां 2026 तक अमेरिका से हासिल होने वाले फ्यूल के तीन बहुत बड़े गैस कैरियर हर महीने खरीदने की योजना बना रही हैं. ये तीनों सरकारी कंपनियां 33.1 करोड़ से ज़्यादा घरेलू उपभोक्ताओं के चूल्हों में इस्तेमाल होने वाली एलपीजी सप्लाई करती है, जिनमें से 60 फीसदी से ज़्यादा आयातित है.
अमेरिका से ज्यादा ऊर्जा खरीदना चाहता है भारत
इस मामले से परिचित व्यापारियों के अनुसार, यह पहली बार है कि भारत, जिसके सऊदी अरब सहित देशों के साथ लॉन्गटर्म कॉन्ट्रैक्ट हैं, अमेरिकी एलपीजी के लिए इसी तरह की व्यवस्था की मांग कर रहा है. यह तब हुआ है जब सरकार ने कहा कि वह अगस्त में लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ को कम करने के लिए वाशिंगटन को मनाने के लिए और अधिक अमेरिकी ऊर्जा खरीदने की योजना बना रही है. इस मामले में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. ना ही ऑयल मिनिस्ट्री की ओर से कोई रिस्पांस आया है.
भारत की क्यों बढ़ रही है मुश्किल?
अमेरिका-चीन के बीच बिगड़ते व्यापारिक संबंधों के कारण भारत और भी ज़्यादा मुश्किलों में फंसता जा रहा है. एलपीजी उन प्रोडक्ट्स में से एक है जो दो सबसे बड़ी इकोनॉमीज के बीच बढ़ते टैरिफ से प्रभावित होती हैं, क्योंकि चीन मिडिल ईस्ट की ओर रुख कर रहा है और अमेरिकी शेल एरिया से अपने माल की अदला-बदली करना चाहता है. इस बीच, सऊदी अरब सहित मिडिल ईस्ट के उत्पादक, जो भारतीय बाजारों में लंबे समय से एलपीजी सप्लायर हैं, कीमतों में कटौती करके जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं. व्यापारियों का कहना है कि इससे फ्यूल की बिक्री बढ़ाने और प्रतिस्पर्धा को कम करने में मदद मिल सकती है. सऊदी अरामको ने अपने ग्राहकों को यह भी बताया है कि उसके द्वारा बेचे जाने वाले एलपीजी के भविष्य के कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू एशियाई बाजार दरों को ज़्यादा प्रभावित करेंगे.