
सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान
बेबाक बोल, तीखे वार और आवाज ऐसी है कि रैलियों में तालियां कम पड़ जाएं… ये शब्द कभी सपा के राष्ट्रीय महासचिव आजम खान के लिए इस्तेमाल होते थे. उत्तर प्रदेश की सियासत में उनकी तूती बोलती थी. मुलायम और अखिलेश की सरकार में उनका जलवा होता था. योगी के सत्ता में आने से पहले तक आजम के सितारे बुलंद थे. 2017 के आजम और 2025 के आजम में अब जमीन आसमां का फर्क आ चुका है. जो आजम सपा की जीत की गारंटी हुआ करते थे वह अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जमीन बचाने में जुटे हैं. जो आजम इंटरव्यू और मंच पर खड़े होकर गुर्राते थे वह अब भावुक हो जाते हैं. वह रोते हैं. इंटरव्यू लेने वाला उनके आंसू पोंछता है. लेकिन ऐसा क्यों. क्या आजम इतने कमजोर हो गए हैं.
सीतापुर जेल से रिहा होने के बाद आजम एक के बाद एक इंटरव्यू दे रहे हैं. वह जेल में बिताए दिनों के बारे में बताते हैं. आजम कहते हैं कि उनको किसी से कोई शिकायत नहीं है. सबका हिसाब ऊपरवाला रखेगा. इस दौरान आजम अपने विरोधियों को भी संदेश देने से नहीं बचते हैं. सपा के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अपनी जीत को कोई उनकी (आजम खान) हार ना माने. आजम खान ने सीधा मैसेज दिया कि वह अभी खत्म नहीं हुए हैं. आज भी उनमें दमखम है.
क्यों रोए आजम खान?
आजम खान ने कहा, 40-45 साल की सियासत में मैं लखनऊ में एक मकान तक नहीं खरीद सका. पिछली बार जब जेल से रिहा हुआ तो गेस्ट हाउस की डिमांड की थी, लेकिन नहीं मिला. सबने मना कर दिया. दोस्तों ने एक ऐसे गेस्ट हाउस में कमरा दे दिया जहां बाउंड्री वाल सिर्फ ढाई फीट की थी. कोई मार ना दे इस डर के कारण सारी रात कुर्सी पर बैठा रहा. उसके बाद कभी लखनऊ नहीं गया, क्योंकि वहां रहने को घर ही नहीं है. इतने दर्द झेल चुका हूं कि अब नए जख्म के लिए जगह भी नहीं है. इतना कहते ही आजम भावुक हो जाते हैं. उनकी आंखों से आंसू निकल आते हैं. भावुक होकर आजम कहते हैं कि हम चोर हैं. हम डकैत हैं. दिल भी पत्थर हो गया. फट जाता तो मर जाता.
यूपी की सियासत को जो जानते हैं वो आजम को इस तरह देखकर जरूर चौंक रहे होंगे. सवाल पूछ रहे होंगे कि वो आजम जो इतना आक्रामक रहते थे वो घड़ी-घड़ी भावुक क्यों हो जा रहे हैं.
क्या आजम इतने कमजोर हो गए?
जेल जाने के बाद से ही आजम की पश्चिमी यूपी में पकड़ कमजोर हुई है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आजम लोगों की सहानुभूति पाना चाहते हैं. आजम सियासत में फिर से खड़ा होना चाहते हैं. वह लोगों के अंदर सरकार के प्रति गुस्सा लाना चाहते हैं. वह लोगों को बता रहे हैं कि देखो तुम्हारे नेता के साथ जेल में क्या किया गया. तुम्हारे नेता पर क्या-क्या आरोप लगाए गए.
रामपुर से 10 बार विधायक रहे आजम खान कभी उत्तर प्रदेश के सबसे प्रभावशाली मुस्लिम राजनेताओं में से एक थे. आजम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटबैंक पर अपनी मजबूत पकड़ के लिए जाने जाते रहे हैं. उनका राजनीतिक उत्थान सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव से जुड़ा था, जिन्होंने उन्हें पार्टी के अंदरूनी घेरे में शामिल किया और अपनी तीनों राज्य सरकारों में उन्हें महत्वपूर्ण विभाग दिए.
हालांकि रामपुर के बाहर आजम खान की लोकप्रियता शुरुआत में सीमित थी, लेकिन मुलायम द्वारा उन्हें अल्पसंख्यक चेहरे के रूप में पेश करने से उनका कद और बढ़ गया. जब 2012 में अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई तो आजम खान का बहुत प्रभाव था और उनके पास आठ विभाग थे. लेकिन 2017 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद उनकी किस्मत बदल गई. तब से उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं, जिनमें जमीन हड़पने और आपराधिक साजिश से लेकर धोखाधड़ी और नफरत फैलाने वाले भाषण तक शामिल हैं.
2022 में हेट स्पीच मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद आजम खान ने विधानसभा सदस्यता खो दी. कानूनी चुनौतियों की भारी राजनीतिक कीमत चुकाने के बावजूद रामपुर में आजम खान का प्रभाव बरकरार रहा. 2022 के विधानसभा चुनावों में आजम खान ने जेल में रहते हुए रामपुर सदर सीट जीती और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम ने स्वार सीट जीती. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आजम खान की रिहाई पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में उथल-पुथल मचा सकती है, जहां दशकों से उनका दबदबा रहा है.
2022 की हार थी बड़ा झटका
कानूनी चुनौतियों के कारण आजम परिवार की राजनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया. ये 2022 के रामपुर उपचुनाव में भी दिखा, जहां बीजेपी ने 34 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की. कभी आजम के गढ़ रहे रामपुर में अब बीजेपी की बड़ी पैठ बनती दिख रही है. आकाश सक्सेना की उपचुनाव जीत आजम खान की विरासत के लिए एक बड़ा झटका थी. रामपुर के अलावा स्वार को बचाए रखना भी आजम के लिए चुनौती है, क्योंकि 2023 के उपचुनाव में यहां से अपना दल को जीत मिली थी.
चुनावी आंकड़े यह भी बताते हैं कि लोकसभा 2024 चुनाव में जब आजम खान जेल में थे, तब पूरे प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं का जितना समर्थन समाजवादी पार्टी को मिला उतना समर्थन पहले कभी नहीं मिला था. कुछ कहते हैं कि सपा का प्रदर्शन दिखाता है कि आजम के जेल में रहने से सपा को कोई नुकसान नहीं हुआ. मतलब आजम का अब वो जलवा नहीं रहा. वहीं आजम के समर्थन कहते हैं कि आजम के जेल में रहने से ही सपा को फायदा. लोगों ने सहानुभूति में वोट दिया.