सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर क्यों छिड़ा विवाद?

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर क्यों छिड़ा विवाद?

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव

मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करने के बाद विवाद में फंस गई है. बीजेपी पर ‘हिंदू विरोधी’ होने का आरोप लगाते हुए स्क्रीनशॉट वायरल हुए. एक वायरल पोस्ट में दावा किया गया सरकार का हलफनामा 1983 की रामजी महाजन आयोग रिपोर्ट का भी सहारा ले रहा है. हालांकि सरकार ने ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है. वायरल पोस्ट में ऐतिहासिक संदर्भ का जिक्र किया गया.

वायरल पोस्ट में दावा किया गया कि मध्य प्रदेश सरकार का सुप्रीम कोर्ट में दिया गया हलफनामा सभी सामान्य जाति के लोगों के लिए एक चेतावनी है. हमेशा हिंदुओं को एकजुट करने का दावा करने वाली पार्टी अब अदालत में हिंदू धर्म को अन्याय, शोषण और बुराई का प्रतीक बता रही है. आरोप लगाए गए कि हलफनामे के कथित अंशों में लगभग 80 फीसदी हिंदुओं के पिछड़ेपन के लिए रामायण और मनुस्मृति जैसे हिंदू धर्मग्रंथों को दोषी ठहराया गया.

इतना ही नहीं, ट्विटर पर वायरल स्क्रीनशॉट से पता चलता है कि कई अन्य अजीबोगरीब दावे भी इसमें शामिल थे. एक स्क्रीनशॉट में दिखाया गया है कि रामायण में ऋषि शंबूक की हत्या को जातिगत उत्पीड़न के उदाहरण के रूप में पेश किया गया. एक अन्य स्क्रीनशॉट में यह दावा किया गया था कि मनुस्मृति शूद्रों की तुलना जानवरों से करके उन्हें अमानवीय बनाती है. साथ ही उच्च-जाति के प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए हिंदू समाज को सदियों तक जानबूझकर विभाजित रखा गया था. इन दावों को लेकर सरकार ने एक स्पष्टीकरण जारी किया और विवादास्पद अंशों से खुद को पूरी तरह अलग बताया.

विवाद के बाद एमपी सरकार ने क्या कहा?

सूबे की सरकार ने कहा कि संज्ञान में यह आया है कि शरारती तत्वों की ओर से सोशल मीडिया पर यह कहते हुए कुछ कंटेंट वायरल किया जा रहा है कि वह टिप्पणियां सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश मध्य प्रदेश शासन के ओबीसी आरक्षण से संबंधित प्रकरण के हलफनामे का भाग है. शासन ने कंटेंट का गंभीरता से परीक्षण किया है. ये टिप्पणियां पूरी तौर पर असत्य, मिथ्या और भ्रामक हैं. ये दुष्प्रचार की भावना से किया गया है. यह स्पष्ट किया जाता है कि वायरल की जा रही सामग्री मध्य प्रदेश सरकार के हलफनामे में उल्लेखित नहीं है और ना ही राज्य की किसी घोषित या स्वीकृत नीति अथवा निर्णय का भाग हैं.

उसने कहा कि सामग्री मध्य प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रामजी महाजन की ओर से पेश अंतिम रिपोर्ट (भाग-1) का हिस्सा है. आयोग का गठन 17 नवंबर 1980 को किया गया था. आयोग ने 22 दिसंबर 1983 को अपनी अंतिम रिपोर्ट तत्कालीन राज्य शासन को भेजी थी. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण संबंधित मामले में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट पेश की है. इन रिपोर्ट में महाजन आयोग की रिपोर्ट के साथ-साथ 1994 से 2011 तक के वार्षिक रिपोर्ट व साल 2022 की राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट भी शामिल है.

MP सरकार ने हलफनामे में क्या दिया तर्क?

मध्य प्रदेश सरकार ने ओबीसी के लिए आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने के अपने निर्णय का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पिछड़े समुदाय की की जनसंख्या का 85 फीसदी से अधिक है और वे गंभीर रूप से वंचित हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 8 अक्टूबर से रोजाना सुनवाई करेगा. 23 सितंबर को दायर अपने हलफनामे में राज्य ने 2011 की जनगणना का हवाला दिया, जिसके अनुसार अनुसूचित जाति (एससी) 15.6%, अनुसूचित जनजाति (एसटी) 21.1% और ओबीसी 51% से अधिक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं. ओबीसी आयोग की 2022 की रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि की कि अकेले ओबीसी राज्य की आधी से ज्यादा आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. राज्य के अनुसार, वंचित समूह मिलकर मध्य प्रदेश की 87 फीसदी से अधिक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं.

सरकार ने कहा कि ओबीसी को पहले केवल 14 फीसदी आरक्षण तक सीमित रखा गया था, जो जनसंख्या के लिहाज से सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के लिए पूरी तरह से अनुपातहीन था. सरकार ने तर्क दिया कि 27 फीसदी तक की वृद्धि न केवल उचित है, बल्कि एक संवैधानिक रूप से जरूरी सुधार करने वाला कदम भी है. यह हलफनामा मध्य प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1994 की धारा 4 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दायर किया गया था, जिसे 2019 के संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधित किया गया था, जिसके चलते राज्य की सेवाओं में सभी पदों पर ओबीसी के लिए आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया गया है.

मध्य प्रदेश में कितना हो जाएगा आरक्षण?

साल 2022 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें राज्य को 14 फीसदी से अधिक ओबीसी आरक्षण देने से रोक दिया गया और दिसंबर 2019 के नियमों पर रोक लगा दी गई. 2024 में याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दी गईं. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को रद्द नहीं किया और मामले की अंतिम सुनवाई अक्टूबर 2025 के लिए निर्धारित कर दी. चूंकि मध्य प्रदेश में अनुसूचित जातियों को 16 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों को 20 फीसदी आरक्षण प्राप्त है, इसलिए ओबीसी आरक्षण को बढ़ाकर 27 फीसदी करने से आरक्षण 50 फीसदी की सीमा से अधिक हो जाएगा. 10 फीसदी आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) कोटे के साथ कुल आरक्षण 73 फीसदी हो जाएगा.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *