
दशहरा 2025Image Credit source: PTI
Dussehra traditions India: दशहरा यानी विजयादशमी का पर्व पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान श्रीराम की विजय की स्मृति में रावण दहन का आयोजन किया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में कुछ ऐसे भी स्थान हैं, जहां दशहरे के दिन रावण दहन नहीं किया जाता? दरअसल, इन जगहों पर रावण को दशहरे के दिन रावण को न सिर्फ सम्मान दिया जाता है, बल्कि कई स्थानों पर उसकी पूजा-अर्चना भी होती है. इसके पीछे रावण की विद्वता, शिवभक्ति और पारिवारिक संबंधों से जुड़ी दिलचस्प मान्यताएं हैं. आइए जानते हैं देश के उन प्रमुख हिस्सों के बारे में जहां रावण दहन नहीं होता है.
भारत की वो जगहें जहां नहीं किया जाता है रावण दहन…
मंदसौर, मध्य प्रदेश: जहां रावण को माना जाता है ‘दामाद’
मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में दशहरे के दिन रावण दहन नहीं किया जाता. इसके पीछे एक रोचक मान्यता है. कहा जाता है कि मंदसौर रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका था. इस नाते मंदसौर के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं. यही कारण है कि दामाद के पुतले को जलाना यहां अशुभ माना जाता है. यहां रावण की एक विशाल प्रतिमा भी स्थापित है, जिसकी पूजा की जाती है और उसकी मृत्यु पर शोक व्यक्त किया जाता है.
बिसरख, उत्तर प्रदेश: रावण का जन्मस्थान और ननिहाल
उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर जिले के बिसरख गांव में भी रावण दहन यानी दशहरा का पर्व नहीं मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान को रावण का ननिहाल और जन्मस्थान माना जाता है. बिसरख के लोग रावण को एक महान विद्वान और अपने कुल का हिस्सा मानते हैं. इसलिए, दशहरे के दिन यहां रावण के पुतले को जलाने के बजाय, उसकी आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं. यहां लंकापति रावण को समर्पित एक प्राचीन मंदिर भी स्थापित है.
गढ़चिरौली, महाराष्ट्र: जहां रावण हैं ‘कुल देवता’
महाराष्ट्र के अमरावती जिले के गढ़चिरौली में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग रावण की पूजा करते हैं. इस समुदाय के लोग रावण को सिर्फ शिव भक्त ही नहीं, बल्कि अपना कुल देवता मानते हैं. वे रावण को वीरता और शक्ति का प्रतीक मानकर उसकी आराधना करते हैं. यही कारण है कि इस क्षेत्र में दशहरे के दिन रावण दहन नहीं किया जाता.
बैजनाथ, हिमाचल प्रदेश: शिव भक्त की तपोस्थली
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के बैजनाथ में भी रावण दहन की कोई परंपरा नहीं है, बल्कि यहां उसकी पूजा-अर्चना की जाती है. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, रावण ने इसी स्थान पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी. रावण को भगवान भोलेनाथ का परम भक्त माना जाता है, इसलिए यहां के लोगों का मानना है कि शिवभक्त का दहन करना अशुभ फल देता है और इससे बड़ी हानि हो सकती है. यहां के लोग रावण को एक महान तपस्वी के रूप में सम्मान देते हैं.
मंडोर, राजस्थान: रावण का विवाह स्थल
राजस्थान के जोधपुर के पास स्थित मंडोर को रावण और मंदोदरी का विवाह स्थल माना जाता है. यहां के स्थानीय लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं और यही कारण है कि यहां भी दशहरे पर रावण का दहन नहीं किया जाता. इसके बजाय, कुछ समुदायों द्वारा शोक व्यक्त करने की परंपरा भी है.
देवघर, झारखंड: रावणेश्वर धाम
झारखंड के देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम, जो बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, को रावणेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि रावण ने इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. रावण की भगवान शिव के प्रति असीम भक्ति के कारण यहां के लोग रावण दहन नहीं करते और शिवभक्त का सम्मान करते हैं.
पूरे देश में भले ही रावण दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हो, लेकिन भारत की यह विविधता ही है कि यहां के कुछ हिस्सों में रावण को उसके ज्ञान, शिवभक्ति और पारिवारिक संबंधों के कारण आज भी सम्मान दिया जाता है. ये स्थान दर्शाते हैं कि भारतीय संस्कृति हर पात्र को एक अलग दृष्टिकोण से देखने की परंपरा रखती है.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.