
स्वामी अवधेशानंद गिरि
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के 100 साल पूरे होने के इस ऐतिहासिक अवसर पर पूरे देश में उत्सव और गौरव का वातावरण है. शताब्दी वर्ष न सिर्फ एक संगठन के लिए मील का पत्थर होता है, बल्कि भारतभूमि की आत्मा और सनातन संस्कृति की जीवंत धारा का प्रतीक भी है. इस अवसर पर सनातन धर्म की परंपरा के संवाहक श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामंडलेश्वर अनन्तश्रीविभूषित पूज्यपाद स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने अपनी शुभकामना और आशीर्वचन देते हुए कहा कि आज मानवता भौतिकता की अंधी दौड़ में जिस तरह से दिशाहीन हो रही है, तब आरएसएस का एकात्म मानव दर्शन पूरी दुनिया के लिए पथप्रदर्शक है.
अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने कहा, “भारत भूमि का इतिहास सिर्फ तारीखों और घटनाओं का क्रम नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति के अमर स्पंदनों का प्रवाह है. इस प्रवाह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उदय उस दिव्य धारा का प्रतीक है, जिसने पिछले 100 सालों में भारत की आत्मा को जाग्रत किया, समाज को संस्कारित किया और राष्ट्र की चेतना को एकात्मता की ओर अग्रसर किया.”
यह राष्ट्रधर्म की अखंड गाथाः स्वामी अवधेशानंद
स्वामी अवधेशानंद गिरि ने अपने बधाई संदेश में संघ की शताब्दी को केवल संगठन की यात्रा न मानकर राष्ट्रधर्म की अखंड गाथा बताया. भारत और विश्व में मानवता के लिए संघ के मार्गदर्शन को पथप्रदर्शक स्वरूप में प्रतिपादित किया. उन्होंने कहा, “यह शताब्दी वर्ष केवल किसी संगठन की यात्रा ही नहीं होती बल्कि राष्ट्रधर्म की अखंड गाथा भी होती है. यह यात्रा दिव्य संस्कारों की अविच्छिन्न अनुपम उदात्त एक अलौकिक सांस्कृतिक आध्यात्मिक अखंड धारा है, जिसने व्यक्ति निर्माण को राष्ट्र-निर्माण का मूल मंत्र बना दिया.”
संघ की तारीफ करते हुए उन्होंने आगे कहा कि संगठन की अजेय शक्ति, जिसने विविधताओं और विभिन्नताओं को एकात्मता में परिवर्तित कर सशक्त समर्थ भारत के सपने को साकार किया. कल्याणकारी सेवा का संकल्प, जिसने विपत्ति, आपदा और महामारी की हर घड़ी में करुणा और सर्वतोभावेन समर्पण से समाज को अपना सर्वस्व न्योछावर किया.
संघ पूरी दुनिया के लिए पथप्रदर्शकः अवधेशानंद गिरि
वह आगे कहते हैं, “संघ की स्थापना के समय भारत दिग्भ्रमित और गुलामी के अंधकार में डूबा हुआ था. ऐसे समय में परम पूज्य डॉक्टर हेडगेवार ने यह दिखाया कि यदि हर हृदय में राष्ट्रभक्ति की ज्योति प्रज्वलित की जाए, तो स्वराज्य का सूर्य उदित होना निश्चित है. वही ज्योति आज भी शाखाओं में, स्वयंसेवकों के जीवन में और राष्ट्र की चेतना में प्रकाशित है.”
महाराज ने कहा, “आज जब मानवता भौतिकता की अंधी दौड़ में दिशाहीन हो रही है, तब संघ का एकात्म मानव दर्शन पूरी दुनिया के लिए पथप्रदर्शक है. यह दर्शन हमें याद कराता है कि धर्म केवल पूजा-पद्धति तक ही सीमित नहीं, बल्कि समाज-कल्याण, चरित्र-निर्माण और राष्ट्रसेवा का महान यज्ञ है.”
उन्होंने कहा, “वेद का यह अमर मंत्र संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् संघ की प्रत्यक्ष साधना का स्वर है. यह शताब्दी पर्व हमें फिर से याद कराता है कि जब हम सब एक साथ चलें, एक साथ सोचें और एक साथ संकल्प लें, तो भारतभूमि का स्वर्णिम भविष्य निश्चित रूप से साकार होगा.”
शताब्दी वर्ष की बात करते हुए अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने कहा, “यह शताब्दी पर्व हम सभी के लिए केवल मात्र उत्सव ही नहीं, बल्कि दैवीय आह्वान है कि हम सनातन संस्कृति के संवाहक बनें. वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को जगत के समक्ष जीवित प्रमाण बनाकर पेश करें. अपने आचरण से यह सिद्ध करें कि सेवा ही परमो धर्मः है.” उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति के संरक्षण संवर्धन, राष्ट्रधर्म निर्वहन तथा सेवा-परोपकार-पारमार्थिक प्रवृत्तियों के प्रसार में अहिर्निश संलग्न संघ शक्ति की दिव्य ज्योति से आलोकित शताब्दी पर्व पर आरएसएस की स्थापना के शताब्दी वर्ष पर अनंत शुभकामनाएं.