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दूध-दही, सब्जी पर गांव के लोग करते हैं ज्यादा खर्च, शहर वाले रह गए पीछे

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आपको जानकर हैरानी होगी कि देश के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग शहरी लोगों के मुकाबले खाने-पीने के सामान पर ज्यादा खर्च करते हैं. इसका मतलब है कि दूध-दही, सब्जी, दाल, खाने का तेल, आदि पर ज्यादा खर्च है. खास बात तो ये है कि गांवों में खाने-पीने सामान पर खर्च कुल खर्च के 50 फीसदी से नीचे चला गया है, जो कि 20 साल में सबसे कम है. वहीं शहरी इलाकों में खाने-पीने का खर्च 40 फीसदी से नीचे है. हाल ही में सरकार ने Household Consumption Expenditure Survey: 2023-24 जारी किया है. जिसमें अगस्त 2023 से जुलाई 2024 तक के किए गए सर्वे के आंकड़े दिए गए हैं. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर खाने पीने के खर्च के मामले में सरकार की ओर से किस तरह के आंकड़े पेश किए गए हैं.

गांवों में शहरों से ज्यादा खर्च

फूड पर खर्च के घटते हिस्से ट्रेंड को बदलते हुए, ग्रामीण और साथ ही शहरी क्षेत्रों में एक व्यक्ति के लिए मंथली कंजंप्शन बास्केट में फूड पर खर्च का हिस्सा 2023-24 में बढ़ गया. गांव में औसत मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (एमपीसीई) या भोजन के लिए एक व्यक्ति द्वारा औसतन खर्च 2022-23 में 46.38 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 47.04 फीसदी हो गया. शहरी परिवारों के लिए भोजन पर खर्च पिछले वर्ष के 39.17 फीसदी से बढ़कर 2023-24 में 39.68 फीसदी हो गया. आंकड़ों से साफ है कि देश में गांवों में रहने वाले लोग दूध, दही, सब्जी, खाने का तेल, दाल आदि पर ज्यादा खर्च करते हैं.

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20 साल में सबसे कम खर्च

पिछले वर्ष 2022-23 में, दो दशकों में यह पहली बार था कि गांव में किसी व्यक्ति के लिए भोजन पर खर्च का हिस्सा एक महीने में उसके कुल कंजंप्शन एक्सपेंडिचर के 50 फीसदी से नीचे चला गया था. इसी तरह, शहरों में भोजन पर खर्च में 1999-2000 में 48.06 फीसदी से घटकर 2011-12 में 42.62 फीसदी और 2022-23 में 39.17 फीसदी की गिरावट देखी गई है. कुल मिलाकर, ग्रामीण परिवार में एक व्यक्ति द्वारा भोजन पर औसत मासिक खर्च 1,939 रुपए था, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 2,776 रुपए देखने को मिला.

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लोगों ने किन फूड आइटम्स पर किया खर्च?

2022-23 की तरह, कुल एमपीसीई के हिस्से के रूप में खाद्य पदार्थों में सबसे अधिक खर्च 2023-24 में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में ‘पेय पदार्थ, प्रोसेस्ड फूड’ पर देखने को मिला. जहां ग्रामीण आबादी ने अपने कुल एमपीसीई का 11.09 फीसदी ‘पेय पदार्थ, जलपान, प्रोसेस्ड फूड’ पर खर्च किया, वहीं शहरी क्षेत्रों की हिस्सेदारी 9.84 फीसदी थी. इसके बाद ‘दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स’ पर खर्च किया गया, जिसमें ग्रामीण परिवार का एक व्यक्ति इस पर अपने कुल मासिक खर्च का 8.44 फीसदी खर्च करता था, और शहरी क्षेत्र का एक व्यक्ति इस पर 7.19 प्रतिशत खर्च करता था.

ग्रामीण (6.03 प्रतिशत) और शहरी (4.12 प्रतिशत) दोनों क्षेत्रों में सब्जियां तीसरे स्थान पर रहीं. इसके बाद, जहां ग्रामीण क्षेत्रों ने अनाज पर अधिक खर्च (4.99 प्रतिशत) किया, वहीं शहरी क्षेत्रों में फलों पर अधिक खर्च (3.87 प्रतिशत) देखा गया. पांचवें स्थान पर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ‘अंडा, मछली और मांस’ (4.92 प्रतिशत), और शहरी क्षेत्रों में ‘अनाज’ (3.76 प्रतिशत) थे.

एक दश​क में बदला खर्च का ट्रेंड

2011-12 और 2022-23 के पहले के वर्षों की तुलना करने पर, कुछ खाद्य पदार्थों में एक दिलचस्प ट्रेंड देखने को मिला. इसे उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं. पिछले कुछ वर्षों में चीनी और नमक पर खर्च में ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में कमी देखी गई है, जबकि ‘पेय पदार्थ, प्रोसेस्ड फूड’ पर देश भर में खर्च में इजाफा देखने को मिला है. ‘अंडा, मछली और मांस’ और खाद्य तेल पर खर्च में भी पिछले एक दशक में शहरी परिवारों के मासिक खर्च में लगातार गिरावट देखी गई है. सब्जियों, मसालों, दालों पर खर्च में पहले ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में गिरावट देखी जा रही थी लेकिन 2023-24 में यह बढ़ गया है. पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में ताजे फलों पर खर्च बढ़ा है, जबकि शहरी क्षेत्रों में दूध और दूध उत्पादों पर खर्च 2022-23 में बढ़ा था लेकिन 2023-24 में कम हो गया.