विवाह के बीच लग जाए सूतक या पातक! जानें शास्त्रों में क्या कहा गया है और क्या करना चाहिए

If the period of mourning or sin is in the middle of a wedding, learn what the scriptures say and what to do.
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हिंदू धर्म में विवाह को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और मांगलिक संस्कार माना गया है. यही कारण है कि विवाह के लिए शुभ मुहूर्त निकाला जाता है और हर विधि-विधान देवताओं को साक्षी मानकर सम्पन्न की जाती है लेकिन कई बार अनहोनी स्थितियां सामने आ जाती हैं जैसे विवाह के दौरान ही घर में किसी बच्चे का जन्म हो जाए (सूतक लगना) या किसी निकट संबंधी की मृत्यु हो जाए (पातक लगना). ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि क्या विवाह रोका जाए या आगे बढ़ाया जाए.

सूतक (जन्म अशौच) का प्रभाव
शास्त्रों के अनुसार, जब किसी घर में बालक का जन्म होता है तो लगभग 1011 दिन तक सूतक माना जाता है. इस दौरान पूजा-पाठ और किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. विवाह संस्कार भी इसमें शामिल है. अगर विवाह का मुहूर्त पहले से तय है और उसी बीच बालक का जन्म हो जाए, तो विवाह रोकने की परंपरा है. हालांकि कई बार जब विवाह स्थगित करना संभव न हो, तो विवाह सम्पन्न कर लिया जाता है और बाद में नवग्रह शांति, जन्म शांति और गृहशांति हवन कराया जाता है. एक मत यह भी है कि सूतक का प्रभाव मुख्य रूप से उसी घर तक सीमित रहता है. यदि विवाह कहीं और हो रहा है तो वहां विवाह किया जा सकता है, लेकिन घर लौटने के बाद शांति कर्म करना अनिवार्य है.

पातक (मृत्यु अशौच) का प्रभाव
मृत्यु अशौच को शास्त्रों में और भी भारी माना गया है. किसी निकट संबंधी की मृत्यु होने पर 13 दिन तक अशौच चलता है. यदि विवाह से पहले मृत्यु हो जाए तो विवाह स्थगित कर दिया जाता है और तेरहवीं के बाद ही नया मुहूर्त निकाला जाता है. लेकिन यदि विवाह की रस्में शुरू हो चुकी हों और बारात द्वार पर हो, तो विवाह रोकना अशुभ माना जाता है. ऐसे में विवाह सम्पन्न कर लिया जाता है, लेकिन बाद में पितृ शांति, गृहशांति और प्रायश्चित कर्म कराए जाते हैं.

शास्त्रीय आधार
गरुड़ पुराण और गृह्यसूत्रों में उल्लेख है कि अशौच काल में किए गए मांगलिक कार्य अधूरे फलदायी होते हैं. विवाह यदि अशौच काल में हो भी जाए, तो दोष निवारण के लिए विशेष पूजा और दान करना आवश्यक है.

क्या करना चाहिए?
यदि विवाह से पहले ही जन्म/मृत्यु हो तो विवाह स्थगित करें.
यदि विवाह शुरू हो चुका है और रोकना संभव नहीं है तो रस्में पूरी करें.
विवाह के बाद नवग्रह शांति, पितृ शांति, गृहशांति और प्रायश्चित यज्ञ कराएं.
दंपत्ति को अशौच की अवधि पूरी होने के बाद शुद्धिकरण स्नान कर पुनः शांति पूजा करानी चाहिए.

अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान कर दोष का निवारण करें.
विवाह के बीच सूतक या पातक लगना अशुभ माना जाता है, लेकिन शास्त्रों ने इसका समाधान भी दिया है. अगर विवाह रोका जा सकता है तो सबसे उत्तम यही है. अगर रोकना संभव न हो, तो विवाह के बाद शांति-विधि और प्रायश्चित से दोष का निवारण किया जाता है ताकि वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहे.