
तांबा, जिंक, सोना और चांदी निकाली जाएगी.
भारत ने इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) के साथ 15 साल का समझौता किया है, जिसके तहत उसे हिंद महासागर में पॉलीमेटालिक सल्फाइड्स की खोज के लिए विशेष अधिकार मिलेंगे. ये पॉलीमेटालिक सल्फाइड्स समुद्र की गहराई में हाइड्रोथर्मल वेंट्स के आसपास बनते हैं और इनमें तांबा, जिंक, सोना और चांदी जैसी धातु पाई जाती हैं. ये धातुएं क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य हाई-टेक उपकरणों के लिए बेहद जरूरी हैं.
भारत पहला देश है, जिसके पास ISA के दो समझौते हैं. पहले समझौते में उसे सेंट्रल और साउथवेस्ट इंडियन रिजेस में खोज की अनुमति मिली थी. अब भारत के पास ISA की ओर से आवंटित सबसे बड़ा खोज क्षेत्र है. भारत प्रशांत महासागर में भी खनिज खोज के लाइसेंस लेने की कोशिश कर रहा है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि ये समझौते भारत की समुद्री और खनिज खोज क्षमताओं को मजबूत करेंगे.
ब्लू इकॉनमी क्यों जरूरी?
मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि देश जिस विकसित भारत का सपना देख रहा है, उसका रास्ता ब्लू इकॉनमी से होकर गुजरेगा. ब्लू इकॉनमी भारत की विकास यात्रा का नया आधार बनेगा. आज भारत के पास 11 हजार किलोमीटर लंबा तटीय क्षेत्र और ढाई मिलियन वर्ग किलोमीटर का एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन है. भारत पॉलीमेटालिक सल्फाइड्स की खोज के अलावा मछली पालन, बंदरगाह, शिपिंग और मरीन बायोटेक्नोलॉजी पर भी फोकस कर रहा है.
सरकार की पहल
सरकार ब्लू इकॉनमी को मजबूत करने पर जोर दे रही है और इसके लिए कई अहम कदम उठाए गए हैं. सागरमाला प्रोग्राम के जरिए बंदरगाहों को आधुनिक बनाया जा रहा है ताकि व्यापार और अधिक प्रतिस्पर्धी हो सके. प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना मछली पालन क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाकर ब्लू रिवोल्यूशन की नींव रख रही है. हरित सागर गाइडलाइंस का उद्देश्य बंदरगाहों को पर्यावरण के अनुकूल बनाना और शून्य कार्बन उत्सर्जन की दिशा में आगे बढ़ना है. इसी तरह, मिशन ओशन के अंतर्गत गहरे समुद्र की खोज के लिए मत्स्य 6000 नामक पनडुब्बी तैयार की गई है.