कम या ज्यादा सोने वाले, कौन! से बच्चे होते हैं होशियार? जानें एक्सपर्ट्स की पूरी राय और स्लीप गाइडलाइन

कम या ज्यादा सोने वाले, कौन! से बच्चे होते हैं होशियार? जानें एक्सपर्ट्स की पूरी राय और स्लीप गाइडलाइन

बच्चों का नींद लेना हमेशा से माता-पिता के लिए चिंता का विषय रहा है। “क्या मेरा बच्चा ज्यादा सोता है?” या “कम सोने से कहीं उसका ब्रेन डेवेलपमेंट तो नहीं रुक रहा?” – ऐसे सवाल अधिकतर पैरेंट्स के मन में बार-बार आते हैं। पुराने मिथकों के मुताबिक, ज्यादा सोने वाले बच्चों को अक्सर आलसी या कम बुद्धिमान, और कम सोने वालों को सुपर एक्टिव या होशियार माना जाता है। लेकिन क्या सच में ऐसा है? डॉक्टर्स और हेल्थ एक्सपर्ट्स का जवाब बिल्कुल अलग है!

बच्चों के लिए नींद क्यों जरूरी है?

इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार बच्चों की उम्र के हिसाब से नींद की जरूरत बदलती रहती है। छोटे बच्चों की नींद बार-बार टूटती है, इसलिए उन्हें सोने के लिए ज्यादा वक्त चाहिए। बढ़ती उम्र के साथ यह नींद कम होती जाती है, परंतु अच्छी सेहत और दिमागी विकास के लिए पर्याप्त नींद लेना बेहद जरूरी है।

उम्र के अनुसार जरूरी नींद (स्लीप चार्ट):

उम्रन्यूनतम नींदस्लीप रेंज
0-3 महीने11 घंटे14-17 घंटे
4-11 महीने10 घंटे12-15 घंटे
1-2 साल9 घंटे11-14 घंटे
3-5 साल8 घंटे10-13 घंटे
6-13 साल7 घंटे9-11 घंटे
14-17 साल7 घंटे8-10 घंटे

गाइडलाइंस कहती हैं कि बच्चों को हर हाल में इस रेंज के अंदर ही सोना चाहिए। अगर बच्चा बताई गई स्लीप रेंज में सोता है, तो चिंता करने की जरूरत नहीं!

पर्याप्त नींद के फायदे

अगर बच्चा अपनी उम्र के हिसाब से सही घंटे सो रहा है तो उसकी एकेडमिक परफॉर्मेंस, मेमोरी, मूड और फिजिकल एक्टिविटीज़ – सब कुछ बेहतर रहता है। अच्छे स्लीप पैटर्न वाले बच्चे ज्यादातर एक्टिव, खुशमिजाज और मेहनती देखे गए हैं। खेलने-कूदने से लेकर पढ़ाई तक वे सब कुछ पूरी एकाग्रता से कर पाते हैं।

कम नींद के नुकसान

जो बच्चे कम सोते हैं, उनकी सेहत पर सीधा असर पड़ता है – जैसे चिड़चिड़ापन, ध्यान की कमी, एकेडमिक परफॉर्मेंस में गिरावट, और यहां तक कि एक्सीडेंट का खतरा भी बढ़ जाता है। ऐसे बच्चों में नई चीजें सीखने की प्रक्रिया भी धीमी हो सकती है।

क्या कम सोने वाले बच्चे ज्यादा स्मार्ट होते हैं?

डॉक्टर्स कहते हैं – गलत! नींद की मात्रा कम होने से बच्चा होशियार नहीं बल्कि बीमार, थका और इर्रिटेबल हो सकता है। ज्यादा सोने का मतलब आलस्य नहीं बल्कि अच्छी सेहत और तेज दिमाग का पैमाना है। अगर आपका बच्चा बताई गई रेंज में सो रहा है तो वह शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप से अच्छा बढ़ रहा है।

माता-पिता के लिए सलाह

बच्चों को रोजाना एक सटीक स्लीप रूटीन दें। उनका सोने-जागने का समय तय करें। स्क्रीन टाइम कम करें, खाने का समय सही रखें और जरूरी हो तो बिस्तर पर किताबें पढ़ाएं ताकि नींद जल्दी आए। नींद पूरी होने से उनका दिमाग तेज, मूड अच्छा और शरीर तंदुरुस्त रहेगा।

निष्कर्ष

रोज के लाइफस्टाइल में बच्चों की नींद को कभी नजरअंदाज ना करें। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, नींद के पैटर्न और वक्त में बदलाव आता है, लेकिन पर्याप्त नींद हर उम्र के लिए जरूरी है। बच्चे जितना बेहतर सोएंगे, उतना ही उनका दिमाग, सेहत और एकेडमिक परफॉर्मेंस तेज होगा।

(डिस्क्लेमर: यह जानकारी बच्चों के सामान्य स्वास्थ्य पर आधारित है। नींद या सेहत संबंधी समस्याओं के लिए डॉक्टर से सलाह जरूर लें।)