
हिंदू धर्म के महान ग्रंथ श्रीमद्भगवद गीता में जीवन और भक्ति से जुड़े गहरे रहस्य छिपे हैं। महाभारत का हिस्सा होने के नाते, इसमें श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद के माध्यम से जीवन का उद्देश्य, भगवान तक पहुँचने का मार्ग और भक्ति का स्वरूप स्पष्ट किया गया है।
गीता के एक विशेष श्लोक (अध्याय 7, श्लोक 16) में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि उनकी भक्ति चार प्रकार के लोग करते हैं—
श्लोक:
“चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ॥”
अर्थ:
हे अर्जुन! चार प्रकार के पुण्यात्मा लोग मेरी भक्ति करते हैं—
- आर्त (दुखी) – जो रोग, संकट या किसी पीड़ा से ग्रस्त होकर भगवान की शरण में आते हैं और मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।
- जिज्ञासु (जिज्ञासु) – जो भगवान, संसार और आध्यात्मिक रहस्यों को जानने के लिए भक्ति करते हैं।
- अर्थार्थी (संपत्ति चाहने वाले) – जिन्हें भौतिक सुख, धन, समृद्धि या परिवार की भलाई चाहिए।
- ज्ञानी (ज्ञानवान) – जो बिना किसी मांग और स्वार्थ के, केवल प्रेम और श्रद्धा से भगवान की उपासना करते हैं।
इनमें से ‘ज्ञानी भक्त’ को श्रीकृष्ण ने सर्वश्रेष्ठ माना है, क्योंकि वे केवल ईश्वर प्रेम से, बिना किसी निजी इच्छा के भक्ति पथ पर चलते हैं।