परिचय
हल्दी—यह भारतीय रसोई का अभिन्न घटक मात्र नहीं, अपितु सदियों से औषधीय गुणों का भण्डार भी रही है। ‘करक्यूमिन’ नामक सक्रिय तत्व इसे सुपरफूड का दर्जा दिलाता है। तथापि, सीमा अतिव्यापी हो तो यह आपके स्वास्थ्य के लिए विपरीत असर भी ला सकती है। आइए जानते हैं, अत्यधिक हल्दी के सेवन से होने वाले मुख्य प्रतिकूल प्रभाव और उनसे बचने के उपाय।

1. पाचन तंत्र की असामान्य प्रतिक्रिया
जब हल्दी की खुराक सेवन सीमा से परे पहुँच जाती है, तो यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल मार्ग में असंतुलन उत्पन्न कर सकती है। परिणामस्वरूप उल्टियाँ या तीव्र दस्त जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, क्योंकि करक्यूमिन की उच्च सांद्रता आंतों को चिढ़ा देती है।
2. अम्लता, ऐंठन एवं सूजन
हल्दी अपनी उष्ण प्रकृति के लिए जानी जाती है। अतिशय सेवन से पेट में जलन, ऐंठन और सूजन की अनुभूति हो सकती है। जैसे कोई तीखा धुआँ फेफड़ों में अटके, ठीक वैसे ही इस मसाले का अत्यधिक प्रभाव भी भीतर से बेचैनी बढ़ाता है।
3. लोह-अवशोषण में बाधा
बेशुमार हल्दी का उपयोग रक्त में लौह तत्व के परिवहन को बाधित कर देता है। आयरन की कमी से जूझ रहे व्यक्तियों को इससे विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, अन्यथा सीधासाधा मार्ग भी संकुचित हो सकता है।
4. पथरी बनने का खतरा
हल्दी में ऑक्सालेट्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। जब इनकी अधिशक्त मात्रा आपके रक्त- और पित्तवस्त्र के संपर्क में आती है, तो गुर्दे अथवा पित्ताशय में पथरी का विकास सम्भव हो जाता है।
सुरक्षित मात्रा एवं सलाह
वैज्ञानिकों और चिकित्सकों की एकमत राय है कि दैनिक एक चम्मच हल्दी से अधिक का सेवन श्रेष्ठ नहीं रहता। इससे न केवल पाचन-तंत्र स्वस्थ रहता है, बल्कि लोह-शोषण एवं गुर्दा-पित्त संबंधी जटिलताएँ भी टाली जा सकती हैं।
टिप: यदि शारीरिक लक्षण—जैसे तेज जलन, दस्त या ऐंठन—स्पष्ट हों, तो हल्दी की खुराक तुरंत सीमित कर विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य करें।
निष्कर्ष
हल्दी हमारे जीवन में स्वाद, सुगंध और स्वास्थ्य—तीनों का संगम है। किन्तु “अति सर्वत्र वर्जयेत” की तरह, इसका अतिरेक भी अनेक स्वास्थ्यसमस्याओं का कारण बन सकता है। इसलिए संतुलन बनाए रखें, औषधीय पहलुओं का लाभ उठाएँ, किन्तु अति की मंजूरी न दें।