Cremation Process in Sikh Community सिख धर्म में अंतिम संस्कार कैसे होता है? “ • ˌ

Cremation Process in Sikh Community : सिख धर्म में अंतिम संस्कार कैसे होता है?

Cremation Process in Sikh CommunityImage Credit source: Grant Faint/The Image Bank/Getty Images

Last rites in Sikh Community : सिख धर्म में अंतिम संस्कार को “अंतिम संस्कार” या “अंतिम अरदास” के रूप में जाना जाता है. यह प्रक्रिया सिख परंपराओं और गुरुओं की शिक्षाओं पर आधारित होती है. सिख धर्म में मृत्यु को आत्मा का परमात्मा से मिलन माना जाता है, इसलिए इसे एक आध्यात्मिक यात्रा के रूप में देखा जाता है. सिख धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया हिंदू धर्म से काफी मिलती-जुलती है, आमतौर पर, शव को अग्नि दी जाती है. हालांकि, कुछ विशिष्ट रीति-रिवाज और प्रथाएं हैं जो सिख धर्म को अलग करती हैं. सिख धर्म में अंतिम संस्कार एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रक्रिया है जो सिख जीवन दर्शन और आध्यात्मिकता को भी दर्शाती हैं.

सिख धर्म में जब किसी का निधन होता है, तो परिवार और संगत (सिख समुदाय) इकट्ठा होते हैं. गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष अरदास की जाती है ताकि दिवंगत आत्मा को शांति मिले और परिवार को सांत्वना मिल सकें. उसके बाद हिंदू धर्म की तरह ही सिख धर्म में मृतक शरीर को जलाने की परंपरा है. इसे अग्नि संस्कार कहा जाता है. शव को सबसे पहले नहलाया जाता है. फिर उसे साफ कपड़े पहनाए जाते हैं और उसके सिर पर केसरी रंग की पगड़ी बांधी जाती है. महिलाओं के सिर को चुन्नी से ढका जाता है. सबसे आखिर में केश, कंघा, कड़ा, कछहरा, और कृपाण जिन्हें सिख धर्म में पांच ककार कहा जाता है. ये सब सिख धर्म में अनिवार्य मानी जाने वाली चीज़ें हैं. इन्हें भी शरीर के साथ रखा जाता है.

ये भी पढ़ें

अन्य धर्मों से अंतर

सिख धर्म में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया हिंदू धर्म से काफी मिलती-जुलती है, लेकिन सिख धर्म में महिलाओं की भागीदारी अधिक होती है. सिख धर्म में महिलाएं भी अंतिम संस्कार में पूरी तरह से शामिल हो सकती हैं. शव को अर्थी पर ही श्मशान घाट तक उसके परिजन ले जाते हैं. जिस तरह से हिंदू धर्म में लोग राम नाम सत्य बोलते हुए अर्थी को श्मशान घाट तक ले जाते हैं, उसी तरह से सिख धर्म में परिजन वाहेगुरु का नाम लेकर अर्थी को श्मशान तक ले जाया जाता है.

अंतिम संस्कार के दौरान और उसके बाद शबद-कीर्तन किया जाता है. यह आत्मा को शांति देने और ईश्वर की महानता का गुणगान करने के लिए किया जाता है. अंतिम संस्कार के बाद 3, 7 या 10 दिन तक गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है, जिसे सहज पाठ कहते हैं. इसके बाद अरदास की जाती है और कराह प्रसाद (पवित्र भोजन) बांटा जाता है. इसे “भोग” कहा जाता है.