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पहाड़ों में पड़ रही बर्फ इस वक्त क्यों जरूरी है? क्या है बारिश से कनेक्शन?

बर्फबारी क्यों जरूरी है

सर्दियों में उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में अचानक होने वाली बारिश अक्सर ठंड बढ़ने का संकेत मानी जाती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह बारिश क्यों होती है और इसका पहाड़ों में हो रही बर्फबारी से क्या संबंध है? इस साल, दिसंबर में पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी ने खासा ध्यान आकर्षित किया है. पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी के कहर के चलते लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जबकि पिछले कुछ सालों में इस महीने में इस तरह की बर्फबारी नहीं दिखी थी.

बर्फबारी सिर्फ पर्यटकों को लुभाने वाली खूबसूरती नहीं, बल्कि यह हमारी जलवायु, नदियों और कृषि के लिए एक जीवनरेखा है. यह सफेद चादर, जो सर्दियों में पहाड़ों को ढक लेती है, गर्मी के महीनों में नदियों के जलस्तर को बनाए रखने, कृषि की सिंचाई और जलवायु संतुलन को स्थिर रखने में अहम भूमिका निभाती है. आइए समझते हैं कि सर्दियों की यह सफेद चादर कितनी अहम है.

सर्दियों की बारिश और बर्फबारी का संबंध

सर्दियों में बारिश का सीधा संबंध पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) से है. यह एक तरह का मौसम तंत्र है जो भूमध्य सागर और अटलांटिक महासागर से नमी लेकर आता है और भारत के उत्तरी पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी और बारिश का कारण बनता है. यह बारिश और बर्फबारी मैदानी इलाकों में ठंड बढ़ाने के साथ-साथ जल स्रोतों को समृद्ध बनाती है.

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बर्फबारी: प्रकृति की जल बैंक

बर्फबारी को पहाड़ों का जल बैंक कहा जा सकता है. यह कई नदियों का स्रोत है, जो लाखों लोगों के लिए पानी का मुख्य जरिया हैं. भारत की प्रमुख नदियां, जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और सतलुज, हिमालय से निकलती हैं. इनका पानी ग्लेशियरों से आता है, और ग्लेशियर बर्फबारी पर निर्भर करते हैं.

तापमान को कंट्रोल करती है बर्फ

बर्फ एक “कंबल” के रूप में काम करती है. सूरज की रोशनी को बाहर रखने के अलावा, बर्फ जमीन को गर्म होने से रोककर तापमान को नियंत्रित करने में मदद करती है. इस तरह हर साल, कुछ बर्फ गर्मी की वजह से पिघलने से बच जाती है. एक बार जब सर्दी आ जाती है, तो अधिक पानी जम जाता है और यह गाढ़ा और मजबूत होकर अनेक सालों तक रहने वाली बर्फ बन जाती है.

जलवायु परिवर्तन और घटती बर्फबारी

हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फबारी के पैटर्न में बड़ा बदलाव देखा गया है. 2019-2023 के आंकड़ों के अनुसार, औसत बर्फबारी में 10-15% की कमी आई है. IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की रिपोर्ट बताती है कि अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे, जिससे नदियों में पानी की कमी होगी. बर्फबारी की यह गिरावट न केवल पानी की उपलब्धता को प्रभावित करती है, बल्कि क्षेत्रीय तापमान और कृषि चक्र को भी गड़बड़ा देती है.

कृषि और बर्फबारी का संबंध

भारत की 60% खेती बारिश और नदियों के पानी पर निर्भर है. बर्फबारी के कारण नदियों में गर्मियों में पानी की स्थिर आपूर्ति होती है, जिससे रबी फसलों को फायदा होता है. जब बर्फबारी कम होती है, तो जलाशयों में पानी कम हो जाता है, जिससे सिंचाई में दिक्कतें होती हैं. हाल ही में, हिमाचल और उत्तराखंड में बर्फबारी की कमी ने बागवानी पर बड़ा प्रभाव डाला है, खासकर सेब और अन्य फलों की खेती पर.

पर्यटन और रोजगार पर असर

हिमालयी इलाकों में बर्फबारी पर्यटन उद्योग की रीढ़ है. हर साल लाखों लोग बर्फबारी देखने आते हैं, जिससे होटलों, ट्रांसपोर्ट और स्थानीय दुकानों को भारी मुनाफा होता है. अगर बर्फबारी कम होगी, तो पर्यटन उद्योग और उससे जुड़े लाखों रोजगारों पर नकारात्मक असर पड़ेगा. बर्फबारी जंगलों के लिए एक ढाल का काम करती है, क्योंकि यह मिट्टी को ठंडा और नम बनाए रखती है. पहाड़ी जानवरों और पक्षियों की कई प्रजातियां सर्दियों के मौसम में बर्फ पर निर्भर करती हैं.