
भारत पर सीधे होगा असर
OPEC+ Oil Output: पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर एक बार फिर चिंता बढ़ाने वाली खबर आ रही है. दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देशों के समूह, ओपेक+ ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसका सीधा असर भारत पर पड़ना तय माना जा रहा है. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रविवार को हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में रूस समेत आठ प्रमुख देशों ने फैसला किया कि वे तेल उत्पादन बढ़ाने की अपनी रफ्तार को रोक देंगे. यह फैसला 2026 की शुरुआत में लागू होगा. बाजार के जानकार इसे एक संकेत मान रहे हैं कि आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की सप्लाई ‘टाइट’ रहेगी, जिसका मतलब है- ऊंची कीमतें. और जब भी कच्चा तेल महंगा होता है, भारत में महंगाई का मीटर चढ़ने लगता है.
क्या है ओपेक+ का फैसला?
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि यह ओपेक+ (OPEC+) आखिर है क्या. यह दुनिया के 22 तेल उत्पादक और निर्यातक देशों का एक बेहद प्रभावशाली गठबंधन है. आसान भाषा में कहें तो ये वो देश हैं जिनके पास तेल के बड़े भंडार हैं और ये मिलकर तय करते हैं कि बाजार में कितना तेल भेजना है. इनका मुख्य मकसद कच्चे तेल की कीमतों को एक स्तर पर बनाए रखना और वैश्विक बाजार में स्थिरता कायम करना है. जब इन्हें लगता है कि कीमतें बहुत गिर रही हैं, तो ये उत्पादन घटा देते हैं और जब लगता है कि कीमतें बहुत बढ़ रही हैं, तो उत्पादन बढ़ा देते हैं.
रविवार को इसी समूह के आठ प्रमुख देशों ने बैठक की. यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब पूरी दुनिया में तेल की मांग और आपूर्ति को लेकर बड़ी बहस छिड़ी हुई है और कीमतें लगातार ऊपर-नीचे हो रही हैं. इसलिए इस बैठक के हर फैसले पर भारत जैसे बड़े खरीदारों की नजर टिकी थी.
दिसंबर में मामूली राहत, फिर ब्रेक
इस बैठक में जो फैसला हुआ, वह दो हिस्सों में है और दूसरा हिस्सा ही भारत के लिए बड़ी चिंता खड़ी कर रहा है. ओपेक+ ने एक आधिकारिक बयान जारी कर बताया कि पहले चरण में, यानी आने वाले दिसंबर महीने में, तेल उत्पादन में हर दिन 137,000 बैरल की बढ़ोतरी की जाएगी. बाजार के लिहाज से यह बढ़ोतरी बहुत मामूली है. विश्लेषकों का मानना है कि यह बढ़ोतरी इतनी कम है कि इससे दुनिया भर में तेल की बढ़ती मांग को पूरा नहीं किया जा सकता.
लेकिन असली चिंता इसके बाद शुरू होती है. फैसले का दूसरा हिस्सा कहता है कि दिसंबर की इस मामूली बढ़ोतरी के बाद, अगले साल यानी 2026 की पहली तिमाही (जनवरी, फरवरी और मार्च) में उत्पादन बढ़ाने की रफ्तार पर पूरी तरह ‘ब्रेक’ लगा दिया जाएगा. यानी, तीन महीनों तक बाजार में अतिरिक्त तेल नहीं आएगा. यह बाजार को एक स्पष्ट संकेत है कि सप्लाई को जानबूझकर सीमित रखा जाएगा, ताकि कीमतों को गिरने से रोका जा सके या उन्हें और बढ़ाया जा सके.
भारत पर पड़ेगा चौतरफा असर
अब सवाल उठता है कि कुछ देशों के इस फैसले का असर सीधे भारत पर कैसे पड़ेगा? इसका जवाब हमारी अर्थव्यवस्था की बुनावट में छिपा है. भारत अपनी जरूरत का 85% से भी ज्यादा कच्चा तेल बाहर के देशों से खरीदता है, यानी हम आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं. जब ओपेक+ जैसे बड़े खिलाड़ी उत्पादन रोकने का फैसला करते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कमी होने की आशंका पैदा होती है. मांग उतनी ही रहती है, लेकिन सप्लाई कम हो जाती है, नतीजा- कीमतें बढ़ने लगती हैं. कच्चे तेल की ऊंची कीमतें भारत के लिए कई मोर्चों पर एक साथ मुश्किल खड़ी करती हैं.
- पहला और सीधा असर: आपकी और हमारी जेब पर. कच्चा तेल महंगा होने का मतलब है कि रिफाइनरियों के लिए लागत बढ़ जाएगी. इसका असर सीधे पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस (LPG) की कीमतों पर दिखाई देगा. माल ढुलाई महंगी होगी, जिससे खाने-पीने की चीजों से लेकर रोजमर्रा के हर सामान की कीमतें बढ़ सकती हैं. यानी, यह फैसला महंगाई को और भड़का सकता है.
- दूसरा असर: देश के खजाने पर. भारत को कच्चा तेल खरीदने के लिए भुगतान डॉलर में करना पड़ता है. जब तेल महंगा होगा, तो हमें पहले से ज्यादा डॉलर खर्च करने होंगे. इससे हमारा ‘आयात बिल’ बढ़ जाएगा. देश का कीमती विदेशी मुद्रा भंडार (डॉलर भंडार) तेजी से घटेगा, जो किसी भी अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
- तीसरा असर: रुपये की कमजोरी. जब तेल खरीदने के लिए बाजार में डॉलर की मांग अचानक बढ़ जाती है, तो भारतीय रुपया दबाव में आ जाता है और डॉलर के मुकाबले कमजोर होने लगता है. कमजोर रुपये का मतलब है कि हमें अब उसी एक बैरल तेल के लिए पहले से ज्यादा रुपये चुकाने होंगे. यह एक ऐसा चक्र है जो आयात को लगातार महंगा बनाता जाता है.
क्या रूस से मिलने वाली ‘छूट’ भी होगी कम?
इस पूरे मामले में एक और पेंच है, जो रूस से जुड़ा है. पिछले कुछ समय से रूस भारत को डिस्काउंट पर यानी सस्ती दरों पर कच्चा तेल दे रहा है. इसने भारत को महंगाई से कुछ हद तक राहत दी है. लेकिन कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अगर ओपेक+ के इस कदम के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें ऊंची बनी रहती हैं और तेल की मांग मजबूत रहती है, तो हो सकता है कि रूस भारत को दिए जाने वाले इस डिस्काउंट में कटौती कर दे. अगर ऐसा होता है, तो यह भारत के लिए दोहरा झटका होगा. एक तरफ अंतरराष्ट्रीय कीमतें ऊंची होंगी और दूसरी तरफ जो थोड़ी बहुत राहत मिल रही थी, वह भी खत्म हो जाएगी.




